क्यूँ चुनना पड़ता है?
हर पल, हर दम, मुझको
है जबकि कुछ मिला नहीं
choose किया हो मैंने
चाहे इसको या उसको |
है मुझको कोई गिला नहीं
मैंने खुद से चुना नहीं
हर पल, हर दम, मुझको
है जबकि कुछ मिला नहीं
choose किया हो मैंने
चाहे इसको या उसको |
है मुझको कोई गिला नहीं
मैंने खुद से चुना नहीं
जन्म को या धर्म को
राष्ट्र को या घर को
फिर क्यूँ करना है? अब
choose मुझे "तुमको" |
सारे बन्धनों में बंधकर
जकड़कर, मचलकर
पर फिर भी
सोचकर समझकर
पूछकर ताछकर
और सब पहलुयो को नापकर |
है आधी तो गुजर गयी
और बाकी की कोई दिशा नहीं
हूँ पर असमंजस में अभी
की choose करूँ?
"तुझे" की नहीं |
मैं नहीं उतना समझदार
है पर मुझी पे सारा दारोमदार
जानता हूँ मैं
होना नहीं ऐसे भवसागर पार
मैं सोचूं एक नहीं
चाहे सौ सौ बार |
अमृत की भी है अभिलाषा नहीं
शिव भक्त मैं, स्वंत्र होता गर
तो चुनता जरूर, पूरे गुरूर
सत्य को,
मृत्यु को और विष को |
राष्ट्र को या घर को
फिर क्यूँ करना है? अब
choose मुझे "तुमको" |
सारे बन्धनों में बंधकर
जकड़कर, मचलकर
पर फिर भी
सोचकर समझकर
पूछकर ताछकर
और सब पहलुयो को नापकर |
है आधी तो गुजर गयी
और बाकी की कोई दिशा नहीं
हूँ पर असमंजस में अभी
की choose करूँ?
"तुझे" की नहीं |
मैं नहीं उतना समझदार
है पर मुझी पे सारा दारोमदार
जानता हूँ मैं
होना नहीं ऐसे भवसागर पार
मैं सोचूं एक नहीं
चाहे सौ सौ बार |
अमृत की भी है अभिलाषा नहीं
शिव भक्त मैं, स्वंत्र होता गर
तो चुनता जरूर, पूरे गुरूर
सत्य को,
मृत्यु को और विष को |
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