सूरज कब तक जले, अब बुझना ही होगा
वृक्ष कब तक रहें खड़े, अब गिरना ही होगा
तुझे ठहर के, अब सम्भलना ही होगा ।
नदी कब तक बहे, अब रुकना ही होगा
तुझे इस खुमार से निकलना ही होगा ।
वृक्ष कब तक रहें खड़े, अब गिरना ही होगा
तुझे स्वप्न-लोक से निकलना ही होगा ।
शिव कब तक विष पिए, अमृत अब पीना ही होगा
तू लाख मरना चाहे, पर अब जीना ही होगा ।
शिव कब तक विष पिए, अमृत अब पीना ही होगा
तू लाख मरना चाहे, पर अब जीना ही होगा ।
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