पकते थे जहाँ बातो के पकवान
दुनिया भर की मुश्किलों से अनजान
नागराज, ध्रुव, डोगा, चाचा, पिंकी
बंटता था जहाँ मुफ्त का ज्ञान
शाम होते ही आ जाते थे
मेरे दोस्त शैतान
थी मेरी वोह comics की दुकान |
दुनिया भर की मुश्किलों से अनजान
नागराज, ध्रुव, डोगा, चाचा, पिंकी
से थी अपनी जम के पहचान
नाग और dogs को दिया कहीं सम्मान
थी मेरी वोह comics की दुकान |
नाग और dogs को दिया कहीं सम्मान
थी मेरी वोह comics की दुकान |
एक comic का किराया था
पचहत्तर पैसा नादान
मिलते ही उसके
चेहरे पे खिल जाती थी जहाँ मुस्कान
थी मेरी वोह comics की दुकान |
समय तो ऐसे दोड़ गया, जैसे
चली हो राजधानी मस्तान
पीछे छुट गए वो सब मैदान
याद आती है अब बहुत उसकी
थी मेरी वोह comics की दुकान |
are wah machau poem... awesome max.. :) :)
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