Friday, October 26, 2012

जीवन पर अब गुरूर है !

मंजिल भले एक स्वप्न हो, 
पथ पर चलना अनंत हो  
रास्ता मगर ये सत्य है  
मंजिल मिले न मिले
पदचिंह तेरे, पैरो में छाले ये, एक तथ्य है 
रुकना नहीं, चलना तेरा कर्तव्य है 
जानता हूँ, के थक के हुआ तू चूर है 
पर मंजिल नहीं, ये पसीना अब गुरूर है ।

विजय भले एक स्वप्न हो 
शत्रु चाहे अनंत हो 
तू लड़ा मगर ये सत्य है 
विजय मिले न मिले 
कटे अंग, लहू से लथपथ बदन, एक तथ्य है 
आराम  नहीं, लड़ना तेरा कर्तव्य है 
जानता हूँ, विजय के लिए तू शुरुर है 
पर विजय नहीं, कटा जो सर तो गुरूर है ।

सुख भले एक स्वप्न हो 
कठिनाई चाहे अनंत हो 
तू जिया मगर ये सत्य है 
सुख मिले न मिले 
दुःख तूने जो झेले, सच तूने जो बोले, एक तथ्य है  
मरना नहीं, जीना तेरा कर्तव्य है
जानता हूँ, दुःख से तू मजबूर है 
पर सुख  नहीं, जीवन पर अब गुरूर है ।

Sunday, October 21, 2012

आजकल

एक ज्वालामुखी हम अपने अन्दर लिए फिरते हैं  
यूँ तो हर गली हर सड़क आजकल बम फटते हैं ।

यूँ तो आँखों में शोले और जुबां पे ज़हर रखते हैं 
बस दिल के दरवाजे आजकल हम बंद रखते हैं । 

Thursday, October 18, 2012

मेरी वोह comics की दुकान

पकते थे जहाँ बातो के पकवान 
बंटता था जहाँ मुफ्त का ज्ञान 
शाम होते ही आ जाते थे 
मेरे दोस्त शैतान 
थी मेरी वोह comics की दुकान |

दुनिया भर की मुश्किलों से अनजान
नागराज, ध्रुव, डोगा, चाचा, पिंकी  
से थी अपनी जम के पहचान
नाग और dogs को दिया कहीं सम्मान 

थी मेरी वोह comics की दुकान | 

एक comic का किराया था 
पचहत्तर पैसा नादान 
मिलते ही उसके 
चेहरे पे खिल जाती थी जहाँ मुस्कान
थी मेरी वोह comics की दुकान | 

समय तो ऐसे दोड़ गया, जैसे 
चली हो राजधानी मस्तान  
पीछे छुट गए वो सब मैदान 
याद आती है अब बहुत उसकी 
थी मेरी वोह comics की दुकान | 

Wednesday, October 17, 2012

अंत अभी बाकी है !

सर्पो ने फन खोला ही है, डसना अभी बाकी है
ये कंठ सूखे नहीं, सीलन इनकी बाकी है ।

बादल तो बरसे ही हैं, गर्जना अभी बाकी है
गुडिया की गुडिया में चाभी थोड़ी बाकी है ।

प्रेम रस को ही है सुना, वीर रस अभी बाकी है
धरती ही तो जीती है, आसमां अभी बाकी है ।

पर्वत सिर्फ पिघले हैं, उफनना अभी बाकी है
 ये तो शुरुआत है, अंत अभी बाकी है ।




Tuesday, October 16, 2012

Change...

सूरज कब तक जले, अब बुझना ही होगा 
तुझे ठहर के, अब सम्भलना ही होगा ।

नदी कब तक बहे, अब रुकना ही होगा  
तुझे इस खुमार से निकलना ही होगा ।

वृक्ष कब तक रहें खड़े, अब गिरना ही होगा 
तुझे स्वप्न-लोक से निकलना ही होगा ।

शिव कब तक विष पिए, अमृत अब पीना ही होगा
तू लाख मरना चाहे, पर अब जीना ही होगा ।  

मर्द !

धरती कब तक ये बोझ सहे, हिलना ही होगा 
सीता क्यूँ चुप-बदनाम रहे, कुछ कहना ही होगा  
द्रोपदी क्यूँ पांच में बटें, खुद से निश्चय करना ही होगा 
राम-कृष्ण के सामने जो हुआ, कलयुग में दोहराना नहीं होगा 
सदियों से बंद इन कपाटो को अब खुलना ही होगा
मेरे साथ शोलो पे अब तुझे भी चलना होगा
मुझे पाना है, मर्द, तो तुझे बदलना ही होगा ।

आदर्शवादी जीवन का ये खोखला चक्कर
खुद को बनाया देवता तूने हर सदी 
तेरे लिए कुर्बान हुयी सीता-द्रोपदी
पर मैं तो हूँ दुर्गा,काली,लक्ष्मी और सरस्वती
कैसे तू भुला इसको हर घडी
तुझे राम-अर्जुन के आदर्शो को भूलना ही होगा
मुझे पाना है, मर्द, तो तुझे बदलना ही होगा ।

रीति-रिवाजो की जंजीरों में बंधकर 

तेरे चरणों की धूल तक मांग में भरी
हर दम तेरे पीछे मैं चली, 
पर मैं ही तो तेरे लिए यम तक से लड़ी
कैसे तू भुला इसको हर घडी
तुझे अब इन जंजीरों को तोडना ही होगा
मुझे पाना है, मर्द, तो तुझे बदलना ही होगा ।

तेरी कल्पना का विषय बनकर
मैं परियो से सुन्दर, सितारों में बसी
तूने चाँद भी तोड़े, मेरे होठ गुलाबो की पंखुड़ी
पर मैं तो खुद ही अन्तरिक्ष तक उडी
कैसे तू भुला इसको हर घडी
तुझे इन उपमायो से अब निकलना ही होगा
मुझे पाना है, मर्द, तो तुझे बदलना ही होगा ।

Monday, October 15, 2012

फिदरत !

मौसम बदलते हैं, रुख हवाओ के बदलते, है बहाव नदी बदल सकती
कमरे में ये "महावीर" की जो आज मूर्ति लगा दी, अब हट नहीं सकती ।

कवि बदलते हैं, हैं बदलते लेखक, ये कलम है बदल सकती
पर मेरे-तेरे बीच ये दीवार जो लगा दी, अब गिर नहीं सकती ।

ग्रह बदलते हैं, बदल जाते नक्षत्र, हैं आकाश-गंगाएं बदल सकती
पर "गीता" के नाम पे ये आग जो जला दी, अब बुझ नहीं सकती ।
 

देश बदलते हैं, बदलते संगी-साथी, है भाषा बदल सकती 
"संस्कृति" का ढोंग करती सोच ये पथरो-सी, अब पिघल नहीं सकती ।

रंग बदलते हैं, हैं जुंबा के ढंग बदलते, हैं तेज नज़र बदल सकती   
पर फिदरत "यूँ ही" ने जो बना ली, अब बदल नहीं सकती ।




Sunday, October 14, 2012

सुन्दरता !

सुन्दरता ! प्रभु का दिया गया वरदान
है क्या तुम्हारा योगदान ?
करो मत इस पर तुम अभिमान 
क्यूंकि, इसको छीनेगा भगवान् ।

है नहीं ये तुम्हारी सम्पदा 
उस ने दिया, तुमको यह उपहार 
करो न इसको यूँ बेकार 
करो इसका, आदर व श्रृंगार ।

ठहरे रहो न, लेके अब यह उपहार
जाओ जाके घिसो-तपो तुम 
कोयला भी हो जाए सोना 
जायो करो कुछ ऐसा चमत्कार । 

याद रखे कौन, क्या लाये तुम 
गीत पर गवें उसी के बाधो-श्रावण 
सृष्टी ने देखा जिसको  
करते हुए खुद का नव निर्माण ।

खुद को कर लो ऐसे तैयार 
यम को भी आये शर्म 
जब आये वोह लेने 
तुमसे तुम्हारा ये उपहार ।

Saturday, October 13, 2012

काम का पूरा दाम दो !

माशपेशियो में ताकत इतनी
पत्थर पिघला सकता हूँ,
है ढ्रडशक्ति इतनी, की
नदी पे बांध लगा सकता हूँ,
मुझमे शर्म नहीं है रत्ती
मल-मूत्र उठा सकता हूँ,
साहस की भी कमी नहीं,
सर तक कटा सकता हूँ ।

काम ही से मेरा मान है
यह मेरा स्वाभिमान है
है काम नहीं कोई भी नीचा
काम से हो, यह सर पर्वत से ऊँचा
तुम मुझको मत एहसान दो
हेयद्रष्टि भी मत तान दो
देना हो तो काम दो
काम का पूरा दाम दो ।







मंजिल को पा !

लहू रगों में है जो तेरी
उसको तू तेज़ाब बना ।

साँसें तेरी जो चलती हैं
उससे तू आंधी को ला ।

कदमो की आहट से तेरी
भूकंप भी अब मुश्किल न हो ।

हुंकार तेरी अब ऐसी हो
सिंह गर्जना जैसी हो ।

आग तेरे है जो दिल में
उससे खुद को और तपा।

बारिश की बूंदों से तू
शीतल बिलकुल मत हो जा ।

हरियाले उपवन को देख
ख्याल किसी के मत खो जा ।

कोयल की मधुर ध्वनि को सुन
इस रस्ते में तू मत सो जा ।

बाँध कल्पना को अपनी

ख्वाबो से खुश मत हो जा ।

सुनहरे पवन के स्पर्श से

एक कवि तू मत हो जा ।

बातो बातो में आज तू
एक दार्शनिक मत हो जा ।

निगाह तेरी मंजिल पर हो
रास्ते-संगियो मत खो जा ।




Friday, October 12, 2012

बातें न कर !

इस महल में वफ़ा की बातें न कर
ये रिश्ते मुश्किल से हमने ढोए हैं ।

इस झोंपड़ी में खिलोनो की बातें न कर

बच्चे मुश्किल से भूखे सोयें हैं ।

अब और जिंदगी की बातें न कर 
मुश्किल से, खुद से, खुद को बचाएं है ।

वादा

वो वादा करके फिर से न आये 

मैंने घर को खूब सजाया
गुलदान में नया फूल भी लगाया 
इत्र हर जगह बिखराया 
वो वादा करके फिर से न आये ।

कल ही कमीज़ की बाईं जेब में 
जो छेद था, वोह भरवाया था 
आज पर दिल में एक छेद हो गया 
वो वादा करके फिर से न आये ।

स्वागत में उनके, हर काँटा बीन डाला
काँटा हाथ में तो एक न चुभा
दिल में चुभ गया
वो वादा करके फिर से न आये ।

आइना बदलते समय गिर गया
वोह गिर के भी न टूटा
मेरा दिल पर टूट गया
वो वादा करके फिर से न आये ।

सात बजे आना था, नौ बजे ख़त मिला
की अगले सोमवार आयेंगे
अगले सोमवार फिर एक ख़त मिला
वो वादा करके फिर से न आये ।

इस बार निकाह की पूरी तैयारी थी
डोली तो उनकी क्या उठी
जनाज़ा हमारा उठ गया
वो वादा करके फिर से न आये ।

कैसे तुम जी लेते हो !

बिना दाम इनाम, तो करता नहीं
मैं सुई जितना भी काम 
हे सूरज, हे चाँद !
तुम मुफ्त में कैसे ?
धूप चांदनी दे देते हो ।

मेरा स्वार्थ न हो तो,
स्थिर रहता हूँ मैं बिलकुल
हे पवन, हे नदी !
तुम निस्वार्थ भाव से कैसे
मीलो मील बह लेते हो ।

मेरा मतलब न हो तो, हर जगह,
हर घडी देर करता हूँ मैं
हे वृक्ष !
तुम कैसे हर वर्ष समय पर
फल अपने दे देते हो ।

जोशराहित जीवन, जैसे तैसे
मैं जी लेता हूँ
हे सागर ।
तुम कैसे दिन में चार-चार बार
उफान भर लेते हो ।

मैं तो जल भुन के जब तब
सिर्फ क्रोध ही बरसाता हूँ
हे बादल !
तुम कैसे गरज के बरस के
सब कुछ शीतल कर देते हो ।

दूजो की असहाय स्थिति पे हंस-हंस के
होता है मेरा तो युक्तीकरण
हे अभागे कमजोर पिछड़े !
दुसरो की हंसी का पात्र बन के भी
कैसे तुम जी लेते हो ।

बैठे रहो न यूँ !

गहराई से डर के, किनारे आज, बैठे रहो न यूँ
चढ़ा है ज्वार, पानी ठंडा है तो क्या 
है नहीं नौका तो गम क्या 
बाजुयो में बल है, तो करो आज 
तुम पार तैर के दरिया ।

भोर के इंतज़ार में, घर में आज, बैठे रहो न यूँ 
है अँधेरी रात, धुंध चारो तरफ तो क्या 
है नहीं मशाल तो गम क्या
मन को मंजिल दिखती है तो
आखें मूंद के ही, करो पार यह रस्ता ।

ऊँचाई से डर के, नीचे आज, बैठे रहो न यूँ
ऊपर जाता नहीं कोई रस्ता तो क्या
है फिसलन, तुम पहले हो तो गम क्या
मन का साहस गर ऊँचा है तो, आज
करो पर्वत पार, कर के तैयार नया रस्ता ।

मेरा परिचय

यह 
मेरा गोरा तन, उस पर से काला मेरा मन 
है मेरी मुलायम शान, पर मेरी कठोर जुबान 
है मेरी ऊँची जात, नीची मेरी औकात 
है तुझे मुझे पे भरोसा, दूंगा मैं फिर भी धोखा 
बात सिर्फ इतनी सी है की 
ऊँची दूकान हैं पर फीके पकवान ।

इज़हार

डरा हूँ नहीं, मैं ज़माने की निगाह से 
मैं तो खुद से डरा हूँ, प्यार से उसके भरा हूँ 
सच है लेकिन, की इनकार का डर है, मुझे मेरे प्यार का डर है 
ऐसे में, कैसे सरेआम मैं कर दूँ 
कैसे मैं इज़हार यह कर दूँ |

है जितना उस पे भरोसा, मुझे खुद पे नहीं है 
जानता हूँ मैं, वोह पाक है, लेकिन 
दुःख तो यह है, की मैं पाक नहीं हूँ 
कैसे उससे यह धोखा सरेआम मैं कर दूँ 
कैसे मैं इज़हार यह कर दूँ |

जहाँपना !

पर्वतो ने पिघलने से किया कब मना
पर न करे मैला, कोई गंगा को जहाँपना |

बादलो ने बरसने से किया कब मना
कोई झूम के बारिश में नाचे तो जहाँपना |

वृक्षों ने कटने से किया कब मना 
लिखे तो कोई गीता फिर से जहाँपना |

पथरो ने रास्तो से, किया कब हटने से मना 
पर कोई निकले तो इन रास्तो पर जहाँपना |

पूजा भक्ती करने से किया कब किसने मना
ह्रदय हनुमान, पर कभी राम तो मिले जहाँपना |

यह जान देने से किया किसने कब मना
पर इस जान की कोई कीमत तो हो जहाँपना |

क्षमावाणी !

यूँ तो मैंने जाने अनजाने 
दुखाया ही होगा हृदय
आपका एक नहीं कई बार |
"क्षमावाणी" की पावन संध्या पर 
मन, वचन और काया से
कृप्या करें मेरी "उत्तम क्षमा" स्वीकार ||


मेरा जीवन !

हँसता हूँ, मैं रोता नहीं अब 
दो घूंट आंसूयों के पीता हूँ जब |

क्रोध से चिल्लाता नहीं अब 
हारें भी सह लेता हूँ सब |

शिकायत तुझसे करता नहीं रब 
बातें खुद से करता हूँ अब |

दोष किसी को देता हूँ कब 
किस्मत से फिट कर लेता हूँ सब |

फिर भी मरता नहीं, मैं लड़ता हूँ अब
रंग जीवन के देखता हूँ सब |






जनाब !

आप झूठ बोलना सीख लीजिये जनाब 
कलयुग में सच बोलना अपराध है |

आप आस्तिक हो लीजिये जनाब 
जात पात में बड़ी बात है |

अपनी आग अपने अन्दर ही रखिये जनाब 
पारा बहार तो पहले ही पचास के पार है |

घुट घुट के जीना सीख लीजिये जनाब 
बहार की हवा आजकल बहुत ख़राब है |

अपने आंसू पीना सीख लीजिये जनाब
पानी के दाम आजकल बे हिसाब है |

हर बात पे मुस्कुरा लीजिये जनाब
हमें छोड के, हर बात ही ख़ास है |

जिंदगी चलती जाती है..

जिंदगी चलती जाती है,
आगे बढती जाती है
और अंततः कट ही जाती है
साथी मिलते हैं,
बिछुड़ भी जाते हैं
बस एक तुम ही तो हो
जो साथ निभाती हो
और मेरे साथ आती हो
इसलिए, तुम चिंता न करना
उन छोटी मोटी बातो का
जो वजह बेवजह
घटित हो जाती हैं |

यूँ तो वक़्त बेवक्त जिंदगी ही
काट देती है मेरा
इसलिए, तुम चिंता न करना
उन छोटी मोटी बातो का
जब कभी कभी तुम,
मेरी बात काट देती हो |

यूँ तो मैं कितना भी चीखुं चिल्लायुं
जिंदगी कहाँ सुनती है मेरा
इसलिए, तुम चिंता न करना
उन छोटी मोटी बातो का
जब कभी कभी तुम,
मुझे सुन के अनसुना कर देती हो |

यूँ तो पन्नेनुमा डिग्रियां जुगाड़ ली हैं मैंने हज़ार
पर जिंदगी को कहाँ समझ पाया हूँ
इसलिए, तुम चिंता न करना
उन छोटी मोटी बातो का
जब कभी कभी तुम,
मुझे गलत समझ लेती हो |

यूँ तो जिंदगी ही कौन सा
खुश रहती है मुझसे
इसलिए, तुम चिंता न करना
उन छोटी मोटी बातो का
जब कभी कभी तुम,
मुझसे अनायास ही रूठ जाती हो |

पर जो भी हो
बस एक तुम ही तो हो
जो साथ निभाती हो
और मेरे साथ आती हो
और ऐसे ही करते करते
जिंदगी चलती जाती है,
आगे बढती जाती है
और अंततः कट ही जाती है |

ईर्ष्या

बड़े नाजो और प्यारो से
पाला है तुझको हमने |
तेरी खातिर !
सच को गलत और
गलत को सच भी
बताया है हमने |
पूरी दुनिया को सर
पे उठाया है हमने
और सिर्फ तुझको दिल
में बसाया है हमने |
यूँ तो दिल टूटे हैं
हमारे कई बार
आयीं, और न जाने कितनी
गयीं हैं होकर
इस दिल के आर पार |
रीना गयी शीना गयी
गयी Lydia भी
पर तू, ईर्ष्या !
बस एक तू
तू न गयी इस मन से |

तुम !

यूँ तो कोई मेरी research
पढता नहीं है 
पर मैं तो उसी से खुश हो जाता हूँ 
जब कभी तुम मुझे पढ़ लेते हो |

यूँ तो मैं कितना भी चीखुं चिल्लायुं 
कोई सुनता समझता नहीं है 
पर दिल खुश हो जाता है 
जब तुम मेरी आहट को सुन समझ लेते हो |

यूँ तो मैं कितना भी मंदिर जायुं मस्जिद जायुं
प्रभु दीखता नहीं है और कुछ बदलता नहीं है
पर वोह दिन महीना अच्छा गुजर जाता है
जब कभी गली किनारे तुम दिख जाते हो |

तेरी खातिर

यूँ तो पीना भाता है मुझे
पर तेरी खातिर !
मैंने पीना छोड़ दिया है
या यूँ समझो
मैंने जीना छोड़ दिया है |

यूँ तो मैं संत नहीं
पहले पी के ही
कुछ सच कह लेता था
पर तेरी खातिर !
मैंने सच कहना छोड़ दिया है
मैंने पीना छोड़ दिया हैं |

यूँ तो मैं मंदिर मस्जिद जाता नहीं
पहले पी के ही
तेरी इबादत ही कर लेता था
पर तेरी खातिर !
मैंने अब इबादत करना छोड़ दिया है
मैंने पीना छोड़ दिया हैं |

यूँ तो मैं कोई शायर नहीं
पहले पी के ही
कुछ लिख लेता था
पर तेरी खातिर !
मैंने लिखना छोड़ दिया है
मैंने पीना छोड़ दिया हैं |

या यूँ समझो
मैंने जीना छोड़ दिया है |

To All the Parents...

माता पिता जो हैं हमारे
हैं वो जग में सबसे प्यारे 
अपना सब कुछ हमको देते 
भूखे रहकर हमें सुलाते |

जब बच्चे जग में आते हैं 
वो गीली मिटटी होते हैं 
जैसे उन्हें ढालते हैं 
वैसे ही ढलते जाते हैं |

आज हैं जो कुछ भी हम
हैं बस उसी कुम्हार के मारे
चाहे राम हो या रावण
हैं तो बस उन्ही के प्यारे |

माता पिता होते वही अच्छे
जो निस्पक्छ भाव से बच्चो को
दया कर्म का पाठ पदाते
और सत्य का मार्ग दिखाते |

बच्चे ऐसे माता पिता के
कठिनाइयों से न डरते
माता पिता का नाम
है रोशन करते |

An Engineer...

आदमी तो हम भी थे 
बड़े काम के दोस्तों 
पर वक़्त की मार और
दो जून की रोटी ने
कम्भख्त Engineer बना दिया |
और हमें जीना सीखा दिया |

नाचते थे हम तो 
हृतिक से अच्छा 
देख जिसे हो जाता था 
हर कोई हक्का बक्का
पर क्या करें, रिश्तेदारों के सपनो ने
कम्भख्त Engineer बना दिया |
और हमें जीना सीखा दिया |

चावला जैसे थे
हमारे साथी संगी
उसके साहस ने उसे
cricketer बना दिया
और हमें मोहल्ले वालो के तानो ने
कम्भख्त Engineer बना दिया |
और हमें जीना सीखा दिया |

पसंद थी हमें
गली की एक लड़की
पर हमारी शायरी पर
उसकी माँ हमेशा भड़की
उसके प्यार ने
कम्भख्त Engineer बना दिया |
और हमें जीना सीखा दिया |

इतने वर्षो की गुलामी ने
हमको छका दिया
और अब हमने risk लेने
का मौंका गँवा दिया
अब तो इस किस्मत ने
कम्भख्त Engineer बना दिया |
और हमें जीना सीखा दिया |

Las Vegas : The Modern Pilgrimage....

एक बरस में एक बार 
है आती दिवाली और होली
एक बरस में एक ही बार 
है vegas जाती अपनी टोली |

vegas ने नहीं कभी
है मेरी किस्मत खोली 
फिर भी भाती है मुझे 
वहां के लोगो की बोली |

निर्भय और सच्चे हैं लोग जहाँ
किये हुए हैं ऊँचे सर
हैं उलझे नहीं बिना बात के
और न ही करते कोई आडम्बर |

निर्वस्त्र होकर भी होता जहाँ काम
पर है मिलता काम का पूरा दाम
और होती नहीं सीता जैसी पवित्र
बिना बात ही बदनाम |

धर्मराज की तरह नहीं लगाते जहाँ
दावं द्रौपदी पर लोग जाने अनजाने
और नहीं ही होता चीर हरण
भरी सभा में भगवान् के सामने |

है ठाकुर जी के ज्ञान की
सिर्फ vegas में रौशनी फैली
बाकी पूरी दुनिया में तो
मैंने तेरी और तुने मेरी ले ली |

लोगो के पापो को धोते धोते
हैं गंगा पहले से ही मैली
कलयुग में vegas जैसे तीर्थ न हो तो
कहाँ खोलूं मैं पापो की यह थैली |

शिखर जी की वंदना की मैंने
ले के श्रद्धा मन में अपरम्पार
हज भी हो के आया मैं
एक नहीं दो दो बार |

इतना सब करके भी
मेरे नहीं खुले ज्ञान के द्वार
vegas जाने से ही
हुआ मेरे तो जीवन का उध्यार |

Power of a Pen...

जब कलम चली जब कलम चली 
भोली भाली कलम चली 
दिखने में तो सीधी सादी
पर ताकत रखती बहुत बड़ी 
जब कलम चली जब कलम चली |

खुद तो चल सकती न यह 
पर दुनिया को चलाये
और जो इसको चलाना जाने है
है दुनिया उसको शिक्षित माने
जब कलम चली जब कलम चली |

रक्षक बनी तो भक्षक कभी
न्याय कभी अन्याय कभी
इसको है जिधर मोड़ दिया
भैया यह तो उधर मुड़ी
जब कलम चली जब कलम चली |

इतिहास लिखा तो कभी कविता
और महापुरुषों की वाणी को
इसने ही तो अमर किया
विध्यानो के हाथो में जाकर
यह धन्य हुयी यह धन्य हुयी
जब कलम चली जब कलम चली |

आना जाना तो लगा रहा
पर न यह कभी थकी
न कभी रुकी
जब कलम चली जब कलम चली |

देश के विकास की है यह जादुई छड़ी
करना है कुछ ऐसा
रह जाए न कोई ऐसा
जिसके जेब में हो न कलम लगी
जब कलम चली जब कलम चली |

For an indecisive person like me

क्यूँ चुनना पड़ता है?
हर पल, हर दम, मुझको 
है जबकि कुछ मिला नहीं 
choose किया हो मैंने
चाहे इसको या उसको |

है मुझको कोई गिला नहीं 
मैंने खुद से चुना नहीं 
जन्म को या धर्म को
राष्ट्र को या घर को
फिर क्यूँ करना है? अब
choose मुझे "तुमको" |

सारे बन्धनों में बंधकर
जकड़कर, मचलकर
पर फिर भी
सोचकर समझकर
पूछकर ताछकर
और सब पहलुयो को नापकर |

है आधी तो गुजर गयी
और बाकी की कोई दिशा नहीं
हूँ पर असमंजस में अभी
की choose करूँ?
"तुझे" की नहीं |

मैं नहीं उतना समझदार
है पर मुझी पे सारा दारोमदार
जानता हूँ मैं
होना नहीं ऐसे भवसागर पार
मैं सोचूं एक नहीं
चाहे सौ सौ बार |

अमृत की भी है अभिलाषा नहीं
शिव भक्त मैं, स्वंत्र होता गर
तो चुनता जरूर, पूरे गुरूर
सत्य को,
मृत्यु को और विष को |

My bike !

हुयी हो जब से तुम बीमार
पैदल आना जाना
लगता है बेकार

है मुझे पूरा यकीन
तुम्हारे जाने के बाद
हो जाएगा जीवन दुश्वार

याद आएगा तुम्हारा वो प्यार
जब करना पड़ेगा मुझे
अकेले बस का इंतज़ार

ठीक तो तुम खुद से होती नहीं
और मैं गरीब, डॉक्टर से
करा सकता नहीं तुम्हारा उपचार

बेशर्म, मांगता है sixty
cycle darling, जबकि
लाया था तुम्हे, देकर सिर्फ dollar अस्सी !















Science

काश ! न हुए होते हम विकसित 
और न होता यह विज्ञान 
आदमी थोडा पीछे होता
पर होता इंसान |

काश ! न हम चाँद पर जाते 
और न होता वायुयान 
कभी कभी इन मेलो में 
जो होती हमारी पहचान
तो न होती चहेरे पर
यह झूठी मुस्कान
काश ! न होता यह विज्ञान |

न होती यह मारामारी
और न यह तूफ़ान
न होता बेकार आदमी
और न बेईमान
काश ! न होता यह विज्ञान |

था जिन्होंने बनाया विज्ञान
लोग थे वो बहुत महान
पर जिनके लिए उन्होंने
किया यह काम
न रखा उसने उनका
बिलकुल भी नाम
शायद इसे देखकर कहता वोह भी
हाय ! क्यूँ बनाया मैंने विज्ञान
काश ! न होता यह विज्ञान |

दुनिया बनाने वाले ने न सोचा होगा
होगा दुनिया का यह अंजाम
इसे देखकर रोता होगा
वह मेरा भगवान्
कहता होगा वो भी
काश ! न होता यह विज्ञान |

Indian Farmers

मैं किसान, मैं हूँ किसान 
भारत का मैं गरीब किसान 
अभावो की परिभाषा हूँ मैं किसान 

सबसे ज्यादा अन्न देखता 
सबसे कम मैं ही हूँ खाता 
तुम लोगो के पेटो की खातिर 
मैं तो भूखा ही सो जाता 
मैं किसान, मैं हूँ किसान
भारत का मैं गरीब किसान

दिन भर मैं खेतो में रहता
सांझ ढले घर पर हूँ आता
टूटी थाली में रूखा सुखा खाकर
चारपाई पर मैं सो जाता
मैं किसान, मैं हूँ किसान
भारत का मैं गरीब किसान

फसल उगाता, फसल काटता
पर जब उसे बेचने जाता
तो मुझे नचाया जाता
मेरी मेहनत कोई और ले जाता
और मैं सिर्फ देखता रह जाता
मैं किसान, मैं हूँ किसान
भारत का मैं गरीब किसान

ग्रीष्म, शीत या हो वर्षा
मैं तो अपना फ़र्ज़ निभाता
और न ही कोई अवकाश मांगता
फिर भी मुझे सताया जाता
कभी कभी तो यह मौसम भी
है मेरा मज़ाक उडाता
और मैं असहाय
सिर्फ देखता रह जाता
मैं किसान, मैं हूँ किसान
भारत का मैं गरीब किसान

सीमा पर जो जवान है
सीमा में वही किसान है
"जय जवान जय किसान"
जवान को तो मिला सम्मान
पर पीछे रह गया किसान
इसीलिए पिछड़ गया हिन्दुस्तान
मैं किसान, मैं हूँ किसान
भारत का मैं गरीब किसान

भूख है शत्रु, अन्न है सेनिक
उस अन्न को मैं हूँ उगाता
पर जब अकाल है आता
उस को अपने पास न पाता
और अपनी अंतिम कुर्बानी देकर
मैं फिर भूखा ही सो जाता
मैं किसान, मैं हूँ किसान
भारत का मैं गरीब किसान

For PhD Students like Me

न राम मिली न माया 
दिल तो था काला पहले से 
PhD करते करते 
हो गयी काली काया

चार साल पहले निकले थे
करने हम विज्ञान
विज्ञान तो हम से हुआ न
उल्टा फंस गयी अधर में जान

चार साल पहले जो बच्चे थे
हो गए अब वोह सब बाप
बाप तो हम बन सके न
पता नहीं कैसा लगा यह श्राप

जो बच्चे अपने हो सकते थे
कह गए वोह तो Uncle
और बच्चो की माँ को देखकर
संभाला किसी तरह हमने मन चंचल

undergraduates, graduates हुए
हुए associate, assistant
पर हम से न उखड़ा
Purdue से अपना tent

jym जाके भी हैं हम मोटे
और salsa जाके कुयांरे
लड़की तो हम से एक पटी न
हुए चार बहिनों के भाई प्यारे

theory करते हैं हम दिन भर
फिर भी fundamentals में हारे
अपनी catrina तो undergrads ले गए
इसीलिए हम single, veggie, and virgin बेचारे !