Thursday, October 18, 2012

मेरी वोह comics की दुकान

पकते थे जहाँ बातो के पकवान 
बंटता था जहाँ मुफ्त का ज्ञान 
शाम होते ही आ जाते थे 
मेरे दोस्त शैतान 
थी मेरी वोह comics की दुकान |

दुनिया भर की मुश्किलों से अनजान
नागराज, ध्रुव, डोगा, चाचा, पिंकी  
से थी अपनी जम के पहचान
नाग और dogs को दिया कहीं सम्मान 

थी मेरी वोह comics की दुकान | 

एक comic का किराया था 
पचहत्तर पैसा नादान 
मिलते ही उसके 
चेहरे पे खिल जाती थी जहाँ मुस्कान
थी मेरी वोह comics की दुकान | 

समय तो ऐसे दोड़ गया, जैसे 
चली हो राजधानी मस्तान  
पीछे छुट गए वो सब मैदान 
याद आती है अब बहुत उसकी 
थी मेरी वोह comics की दुकान | 

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