Saturday, October 13, 2012

मंजिल को पा !

लहू रगों में है जो तेरी
उसको तू तेज़ाब बना ।

साँसें तेरी जो चलती हैं
उससे तू आंधी को ला ।

कदमो की आहट से तेरी
भूकंप भी अब मुश्किल न हो ।

हुंकार तेरी अब ऐसी हो
सिंह गर्जना जैसी हो ।

आग तेरे है जो दिल में
उससे खुद को और तपा।

बारिश की बूंदों से तू
शीतल बिलकुल मत हो जा ।

हरियाले उपवन को देख
ख्याल किसी के मत खो जा ।

कोयल की मधुर ध्वनि को सुन
इस रस्ते में तू मत सो जा ।

बाँध कल्पना को अपनी

ख्वाबो से खुश मत हो जा ।

सुनहरे पवन के स्पर्श से

एक कवि तू मत हो जा ।

बातो बातो में आज तू
एक दार्शनिक मत हो जा ।

निगाह तेरी मंजिल पर हो
रास्ते-संगियो मत खो जा ।




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