Friday, October 12, 2012

For an indecisive person like me

क्यूँ चुनना पड़ता है?
हर पल, हर दम, मुझको 
है जबकि कुछ मिला नहीं 
choose किया हो मैंने
चाहे इसको या उसको |

है मुझको कोई गिला नहीं 
मैंने खुद से चुना नहीं 
जन्म को या धर्म को
राष्ट्र को या घर को
फिर क्यूँ करना है? अब
choose मुझे "तुमको" |

सारे बन्धनों में बंधकर
जकड़कर, मचलकर
पर फिर भी
सोचकर समझकर
पूछकर ताछकर
और सब पहलुयो को नापकर |

है आधी तो गुजर गयी
और बाकी की कोई दिशा नहीं
हूँ पर असमंजस में अभी
की choose करूँ?
"तुझे" की नहीं |

मैं नहीं उतना समझदार
है पर मुझी पे सारा दारोमदार
जानता हूँ मैं
होना नहीं ऐसे भवसागर पार
मैं सोचूं एक नहीं
चाहे सौ सौ बार |

अमृत की भी है अभिलाषा नहीं
शिव भक्त मैं, स्वंत्र होता गर
तो चुनता जरूर, पूरे गुरूर
सत्य को,
मृत्यु को और विष को |

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