हिमालय की ऊँचाई समझ में तब आई
जब इन पैरो ने की शुरू उस पे चडाई ।
समंदर की गहराई समझ में न आई
छलांग समंदर में जब तक न लगायी ।
पापा के दुःख-दर्द समझ में आये
पापा के जूते जब इन पैरो में आये ।
माँ का प्यार-दुलार समझ में आया
खाना इन हाथो ने खुद जब पकाया ।
भैया के सहमे चेहरे पे अब तरस है आया
ये चेहरा हमने जब दस-दस जगह दिखाया ।
दो और दो चार समझ में न आये
पेंटो की जेबों को छोटा जब तक न पाए ।
दादा-दादी की बात वो अब समझ में आई
जो कहा था "यह बात समझ अभी नहीं आई" ।
ये कंघी अनुभव की तब हाथ में आई
हो चुकी थी जब सारे बालो की झडाई ।
ये जीवन भी तभी समझ में आया
जब खुद को शर-शय्या पर पाया ।
बुजुर्गो की कहावत समझ में अब आई
"जाके पाँव न फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई" ।
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