Sunday, December 15, 2019

It is better what it seems !

Sweats do come in the dream,
there is pain in the extreme,
I think, I will run out of steam
But, It is better what it seems !

Some days I just wanna scream
life sucks and I have no scheme
Hoping somewhere is some gleam
But, It is better what it seems !

Disaster though comes as a team
Everything comes down as a stream
Suffering doesn't have any theme
But, It is better what it seems !

Clock is ticking with no esteem
Patience is melting like ice-cream  
Sorrow is not cured by any Hakim
But, It is better what it seems !  

Some souls don't have a seam
Some houses don't have a beam
not that anything you can re-deem
But, It is better what it seems !

Saturday, August 24, 2019

Clash with-in !

Human me, the animal me 
always in clash with-in me

A battle, no one ever wins
just creates a rage with-in !

Animal is always roaring
Human is always soaring

can they not be at peace?
would their existence cease?  

Can I choose one or the other?
am I the judge or just spectator?

am I the slave or the master?
Who knows who would be laster?
human me, animal me or me!

Thursday, June 13, 2013

Selfishness!

why its importance so debated
its significance always misstated !

so negatively it is connoted
misdeeds it does, always inflated !


how I forget, it keeps us motivated !
never know, why it is so desecrated

O Selfishness! you are so underrated !
I wish to have you more without being belated ! 

Tuesday, January 8, 2013

Fundamental Limits....

यूँ- ही पृथ्वी-सूरज-चाँद-तारो का रहस्य पता न होता 
Newton ने गर law of gravitation न दिया होता । 

यूँ-ही भविष्य-वाचन के फेर में ऐसे ही विशवास करता
Poincare ने गर Chaos को न discover किया होता । 

यूँ-ही खुद को complete समझने के भ्रम में ऐसे ही रहता
Godel ने गर Incompleteness theorem न दिया होता । 

यूँ-ही खुद को सबसे बड़ा समझने की भूल ही करता
Cantor ने गर infinity का concept न दिया होता ।

यूँ-ही दो से चार की जुगत में ऐसे ही रहता
2nd law ने गर इतना परेशां न किया होता ।

(2nd law=2nd law of thermodynamics)

शीत-ऋतु

न खिलती है धूप यहाँ 
न खिलती हैं उमंग भी

सो गया है सूरज यहाँ 
सो गयी मन-तरंग भी 

चुप हैं पशु-पक्षी यहाँ 
चुप हैं हर-कोई भी 

जम चुके हैं नदी-नहर यहाँ
जम चुके हैं विचार भी

काँपता है ये बदन यहाँ
कांपती ये लेखनी भी

अलसाई ये आँखें यहाँ
अलसाये ये शब्द भी

जल रहे अलाव यहाँ
जल रहीं आशाएँ भी

एक तरफ शीत-ऋतु यहाँ
एक तरफ शीत-चेतना भी ।

लुट गए हम तो !

दरिया में कूद कर-डूब कर मर जाते, गम न था 
किनारे खड़े-खड़े, गहराई से डर के, लुट गए हम तो ।

दुखो में भी इतने दुखी न थे हम तो 
बीते सुखो की सोच में लुट गए हम तो ।

खोकर आजतक कुछ भी न खोया हमने 
झूठी आस लगा के लुट गए हम तो |

Saturday, December 8, 2012

बोतल !

तू पिला मुझे खुल के कभी 
जानने को मुझे बोतल एक काफी है ।

यूँ तो तेरे मेरे बीच फासले काफी हैं 
कम करने को पर बोतल एक काफी है ।

यूँ तो शिकायतें हैं मुझे तुझसे आज बहुत
शिकायत न करने को पर बोतल एक काफी है ।

तेरे प्यार में खुमार अब वो कहाँ
खुमार को अब बोतल एक काफी है ।

अब तेरी जरूरत है इधर किसे
जीने को जब एक बोतल काफी है ।

Friday, November 23, 2012

नाम हो, या हो बदनाम !

गांधी बनो या बनो गोडसे
हो शहीद या म्रत्युदंड तुम पायो
सूर्य जितना तेज दिखायो
या चाँद के जैसे शीतल हो जायो
फूल बनकर गर महक सको न
काँटा बन शत्रु पे गिर जायो
अमृत गर मिल सके न
शिव के जैसे विष पी जायो
सदियां याद रखें तुझको बस
प्रख्याति हो तेरे जस
फिर नाम हो, या हो बदनाम 
करो जायो कुछ ऐसा काम ।

Sunday, November 18, 2012

हे प्रभु !

हे प्रभु ! आप यह किस संकट में छोड़ गए 

धर्म की हानी होने पर प्रकट होने का 
झूठा वादा करके, आप तो मुंह ही मोड़ गए |

कर्म कर और फल की इच्छा मत कर
ऐसा कह के, मेरे जीने की आस क्यूँ तोड़ गए |

सोमवार

वार ने सिर्फ किया हम पर अत्याचार है 
वार का हम पर हम से ज्यादा अधिकार है 
वार के आगे लगता, ये जीवन तो धिक्कार है 
वार ऐसा, जो करता हर सप्ताह हम पर वार है 
मानवजाति पर किया गया वो सबसे बड़ा वार है 
वार वो कोई और नहीं अपना सोमवार है ।