दरिया में कूद कर-डूब कर मर जाते, गम न था
किनारे खड़े-खड़े, गहराई से डर के, लुट गए हम तो ।
दुखो में भी इतने दुखी न थे हम तो
बीते सुखो की सोच में लुट गए हम तो ।
खोकर आजतक कुछ भी न खोया हमने
झूठी आस लगा के लुट गए हम तो |
किनारे खड़े-खड़े, गहराई से डर के, लुट गए हम तो ।
दुखो में भी इतने दुखी न थे हम तो
बीते सुखो की सोच में लुट गए हम तो ।
खोकर आजतक कुछ भी न खोया हमने
झूठी आस लगा के लुट गए हम तो |
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