न खिलती है धूप यहाँ
न खिलती हैं उमंग भी
सो गया है सूरज यहाँ
सो गयी मन-तरंग भी
चुप हैं पशु-पक्षी यहाँ
चुप हैं हर-कोई भी
जम चुके हैं नदी-नहर यहाँ
जम चुके हैं विचार भी
काँपता है ये बदन यहाँ
कांपती ये लेखनी भी
अलसाई ये आँखें यहाँ
अलसाये ये शब्द भी
जल रहे अलाव यहाँ
जल रहीं आशाएँ भी
एक तरफ शीत-ऋतु यहाँ
एक तरफ शीत-चेतना भी ।
न खिलती हैं उमंग भी
सो गया है सूरज यहाँ
सो गयी मन-तरंग भी
चुप हैं पशु-पक्षी यहाँ
चुप हैं हर-कोई भी
जम चुके हैं नदी-नहर यहाँ
जम चुके हैं विचार भी
काँपता है ये बदन यहाँ
कांपती ये लेखनी भी
अलसाई ये आँखें यहाँ
अलसाये ये शब्द भी
जल रहे अलाव यहाँ
जल रहीं आशाएँ भी
एक तरफ शीत-ऋतु यहाँ
एक तरफ शीत-चेतना भी ।
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