Tuesday, January 8, 2013

Fundamental Limits....

यूँ- ही पृथ्वी-सूरज-चाँद-तारो का रहस्य पता न होता 
Newton ने गर law of gravitation न दिया होता । 

यूँ-ही भविष्य-वाचन के फेर में ऐसे ही विशवास करता
Poincare ने गर Chaos को न discover किया होता । 

यूँ-ही खुद को complete समझने के भ्रम में ऐसे ही रहता
Godel ने गर Incompleteness theorem न दिया होता । 

यूँ-ही खुद को सबसे बड़ा समझने की भूल ही करता
Cantor ने गर infinity का concept न दिया होता ।

यूँ-ही दो से चार की जुगत में ऐसे ही रहता
2nd law ने गर इतना परेशां न किया होता ।

(2nd law=2nd law of thermodynamics)

शीत-ऋतु

न खिलती है धूप यहाँ 
न खिलती हैं उमंग भी

सो गया है सूरज यहाँ 
सो गयी मन-तरंग भी 

चुप हैं पशु-पक्षी यहाँ 
चुप हैं हर-कोई भी 

जम चुके हैं नदी-नहर यहाँ
जम चुके हैं विचार भी

काँपता है ये बदन यहाँ
कांपती ये लेखनी भी

अलसाई ये आँखें यहाँ
अलसाये ये शब्द भी

जल रहे अलाव यहाँ
जल रहीं आशाएँ भी

एक तरफ शीत-ऋतु यहाँ
एक तरफ शीत-चेतना भी ।

लुट गए हम तो !

दरिया में कूद कर-डूब कर मर जाते, गम न था 
किनारे खड़े-खड़े, गहराई से डर के, लुट गए हम तो ।

दुखो में भी इतने दुखी न थे हम तो 
बीते सुखो की सोच में लुट गए हम तो ।

खोकर आजतक कुछ भी न खोया हमने 
झूठी आस लगा के लुट गए हम तो |