Friday, November 23, 2012

नाम हो, या हो बदनाम !

गांधी बनो या बनो गोडसे
हो शहीद या म्रत्युदंड तुम पायो
सूर्य जितना तेज दिखायो
या चाँद के जैसे शीतल हो जायो
फूल बनकर गर महक सको न
काँटा बन शत्रु पे गिर जायो
अमृत गर मिल सके न
शिव के जैसे विष पी जायो
सदियां याद रखें तुझको बस
प्रख्याति हो तेरे जस
फिर नाम हो, या हो बदनाम 
करो जायो कुछ ऐसा काम ।

Sunday, November 18, 2012

हे प्रभु !

हे प्रभु ! आप यह किस संकट में छोड़ गए 

धर्म की हानी होने पर प्रकट होने का 
झूठा वादा करके, आप तो मुंह ही मोड़ गए |

कर्म कर और फल की इच्छा मत कर
ऐसा कह के, मेरे जीने की आस क्यूँ तोड़ गए |

सोमवार

वार ने सिर्फ किया हम पर अत्याचार है 
वार का हम पर हम से ज्यादा अधिकार है 
वार के आगे लगता, ये जीवन तो धिक्कार है 
वार ऐसा, जो करता हर सप्ताह हम पर वार है 
मानवजाति पर किया गया वो सबसे बड़ा वार है 
वार वो कोई और नहीं अपना सोमवार है ।

Saturday, November 17, 2012

समझ में तो आया !

अच्छा हुआ, तुझे छोड़ के मैं दूर इतना चला आया
चार दीवारें नहीं, वो घर था, समझ में तो आया ।

अच्छा हुआ, धन के लिए, मैं सबसे मुंह मोड़ आया
धन तो वही चार लोग हैं, समझ में तो आया ।

अच्छा हुआ, दुनिया समझने के लिए, मैं तेरा हाथ छोड़ आया
पर तू ही तो दुनिया है माँ, समझ में तो आया ।

Friday, November 16, 2012

मास्टरजी

मास्टरजी ने कर रखी है रातो की नीद भंग |
गिरते सफ़ेद बालो को देख, हो जाते हैं हम दंग |
मोटापा और चेहरे की झुरियां करती हैं बड़ा तंग |
बढती उम्र और शादी की टेंशन ने कर दिया है हमें बिलकुल अपंग |
और इन सब की वजह से कट गयी है
हमारे आनंदों की पतंग |

इसलिए, ऐसी जिंदगी से आ गए हैं हम तंग |
रह गयी है जिंदगी में न अब कोई तरंग |
है अब सिर्फ एक ही उमंग |
की बना सके हमें कोई दबंग |

PhD's Consequences !

अपनी रूचि और महत्वाकांक्षा की कीमत चुका रहे हैं
बेवफा research को बिना परिणाम किये जा रहे हैं ।

जिस बेवफा के लिए दी गयी हैं इतनी कुर्बानी 
उसका तो पाना भी लगने लगा है अब बेमानी ।

पांच साल के बाद जाके किस को क्या दिखाएँ 
चार पेपर-जो हम नहीं समझे, कैसे किसे समझाएं ।

B.Tech के B.Tech हैं, डिग्री अब तक हाथ न आये ।
1500$ के नौकर कैसे किसी का हाथ मांग लायें।

वर्तमान जहाँ धिक्कार और भविष्य अन्धकार,
ऐसे में कौन ही करेगा इस गरीब पर विचार ।

धिक्कार इस जीवन पर, अत्याचार की तो अति ही हो गयी
ऐसी दशा देख के, घरवालो की मिलायी लड़की भी रुष्ट हो गयी ।

ये किस्मत है फूटी के कल परिमाण सिद्ध निकले
research की तरह जब ये पटाखे भी सीले निकले ।

हमसे अच्छे तो हमारे वो जिगरी दोस्त निकल गए
BA किया, नौकर हुए, pension मिली और मर गए ।

Friday, November 2, 2012

जाके पाँव न फटे बिवाई !


हिमालय की ऊँचाई समझ में तब आई
जब इन पैरो ने की शुरू उस पे चडाई ।

समंदर की गहराई समझ में न आई 
छलांग समंदर में जब तक न लगायी ।

पापा के दुःख-दर्द समझ में आये 
पापा के जूते जब इन पैरो में आये ।

माँ का प्यार-दुलार समझ में आया 
खाना इन हाथो ने खुद जब पकाया ।

भैया के सहमे चेहरे पे अब तरस है आया 
ये चेहरा हमने जब दस-दस जगह दिखाया ।

दो और दो चार समझ में न आये 
पेंटो की जेबों को छोटा जब तक न पाए ।

दादा-दादी की बात वो अब समझ में आई 
जो कहा था "यह बात समझ अभी नहीं आई" ।

ये कंघी अनुभव की तब हाथ में आई 
हो चुकी थी जब सारे बालो की झडाई ।

ये जीवन भी तभी समझ में आया 
जब खुद को शर-शय्या पर पाया । 

बुजुर्गो की कहावत समझ में अब आई
"जाके पाँव न फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई" ।